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कार्यक्रम संरचना

आईआईएम जम्मू में पीएच.डी पाठ्यक्रम को निम्‍नांकित रूप में वर्गीकृत किया गया है:

  • प्रथम चरण (प्रबंधन के बुनियादी सिद्धांत)
  • द्वितीय चरण (विशेषज्ञता)
  • तृतीय चरण (पीएचडी थीसिस)

अनुसंधान अध्‍येता आम तौर पर चार साल का समय बिताएंगे, जिसमें दो साल का कड़ा पाठ्यक्रम कार्य शामिल होता है। पहले वर्ष में पाठ्यक्रम कार्य के अंतर्गत सामान्य प्रबंधन की जानकारी दी जाएगी और प्रबंधकीय समस्याओं के विश्लेषण के लिए बुनियादी कौशल विकसित करने का प्रयास किया जाएगा। दूसरे वर्ष में, अनुसंधान अध्‍येता विशेषज्ञता के क्षेत्र में डॉक्टरेट स्तर की आधुनिक पाठ्य सामग्री का अध्‍ययन करेंगेे और इसके बाद अगले दो वर्ष पीएचडी शोध प्रबंध (थीसिस) के लिए लगाए जाएंगे। थीसिस का उद्देश्य प्रबंधन के क्षेत्र में या इसके स्रोत विषयों में से किसी एक में मूल योगदान करने का अवसर प्रदान करना है। नीचे इन चरणों की झलक दर्शायी गई है।

चरण I : (प्रबंधन के बुनियादी सिद्धांत)

यह चरण आमतौर पर पहले वर्ष में पूरा होता है। इस वर्ष का पाठयक्रम सामान्य प्रबंधन में आवश्यक दक्षता विकसित करने और विशेषज्ञता के क्षेत्र में व्यापक समझ के लिए बनाया गया है। सभी अनुसंधान अध्‍येता, भले ही उनका विशेषज्ञता क्षेत्र कोई भी हो, एमबीए पाठयक्रम के पहले वर्ष में प्रस्‍तावित अधिकांश पाठ्यक्रमों को लेते हैं। अनुसंधान अध्‍येता प्रमुख कार्यात्मक और सामान्य प्रबंधन क्षेत्रों से संबंधित पाठ्यक्रम लेते हैं, जिनमें लेखांकन और नियंत्रण, कंप्यूटर और सूचना प्रणाली, वित्त, विपणन, संचालन, कार्मिक और औद्योगिक संबंध और कार्यनीति जैसे विषय शामिल हैं। अनुसंधान अध्‍येताओं को अर्थशास्त्र, व्यवहार विज्ञान और मात्रात्मक पद्धतियों के बुनियादी विषयों से भी अवगत कराया जाता है।

ग्रीष्मकालीन इंटर्नशिप के दौरान, पाठ्यक्रम कार्य के पहले वर्ष के अंत में, सभी शोधार्थी संस्थान में या किसी अन्य संगठन में एक संकाय सदस्य के साथ शोध परियोजना को पूरा करते हैं। पहला चरण न्यूनतम निर्धारित प्रवीणता और ग्रीष्मकालीन परियोजना के पूरा होने के साथ सभी पाठ्यक्रमों के सफल समापन के साथ समाप्त होता है। अनुसंधान अध्‍येताओं को सभी पाठ्यक्रमों में कुछ अकादमिक आवश्यकताओं को पूरा करने की आवश्यकता होती है, लेकिन कुछ निर्दिष्ट पाठ्यक्रमों में उच्च प्रदर्शन आवश्यक होता है।

चरण II : (विशेषज्ञता)

दूसरे वर्ष में, शोध विद्यार्थी अपने क्षेत्र में विशेषज्ञता और संबंधित क्षेत्रों में गहन ज्ञान प्राप्त करने के उद्देश्य से उन्नत पाठ्यक्रम लेते हैं। इसके अलावा, सभी शोधार्थियों को पीएच.डी का अनिवार्य पैकेज लेना होता है जिसमें ऐसे पाठ्यक्रम होते हैं जो विशेष रूप से शिक्षण और अनुसंधान कौशल और उनके सीखने को एकीकृत करने की क्षमता विकसित करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। इस चरण के दौरान अनुसंधान अध्‍येता अपने विषय से संबद्ध शिक्षक के साथ घनिष्‍ठ बातचीत करते हैं और उन्हें उनकी विशेषज्ञता में अनुसंधान के क्षेत्रों की खोज शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। 2019 से शुरू होने वाला कार्यक्रम निम्नलिखित छह क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्रदान करता है:

  1. वित्त और लेखांकन
  2. विपणन
  3. प्रचालन और आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन
  4. संगठनात्मक व्यवहार और मानव संसाधन प्रबंधन
  5. व्यापार नीति और कार्य नीति
  6. सूचना प्रौद्योगिकी प्रणालियां और विश्लेषण

दूसरे चरण के कार्यक्रम सफलतापूर्वक पूर्ण होने के बाद, अनुसंधान अध्येता व्यापक परीक्षा में संलग्न होता है। यह परीक्षा तृतीय वर्ष के प्रारंभ में आयोजित की जाती है और इससे यह पता लगाने का प्रयास किया जाता है कि शोधार्थी ने अपने विशेषज्ञता क्षेत्र में ज्ञान का संतोषजनक स्तर प्राप्त कर लिया है या नहीं। व्यापक परीक्षा की जरूरतें सम्बद्ध क्षेत्रों द्वारा निर्दिष्ट की जाती हैं।

चरण III : शोध प्रबंध (पीएच.डी थीसिस)

शोध प्रबंध शोधार्थी को उसकी रुचि के क्षेत्र में मौलिक अनुसंधान करने का अवसर प्रदान करता है। शोध प्रबंध ज्ञान के क्षेत्र में शोधार्थी का विद्वतापूर्ण योगदान होना चाहिए, जो प्रबंधन समस्याओं की समझ और उनके समाधान के अनुरूप हो। आईआईएम जम्मू में डॉक्टरल अनुसंधान शोधार्थी के प्रशिक्षण का अनिवार्य हिस्सा है। शोधार्थी को पाठ्यक्रम के दौरान प्रथम चरण से ही प्रारंभ करते हुए संस्थान में और संकाय के सदस्यों के साथ अनुसंधान गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

तृतीय चरण की शुरुआत शोध प्रबंध सलाहकार समिति (टीएसी) के गठन के साथ होती है। शोधार्थियों को शिक्षकों से मिलने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जिनके साथ वे अनुसंधान के हितों को साझा करते हैं और शोध प्रबंध के विषय की पहचान करने में उनकी सहायता लेते हैं। पाठ्यक्रम कार्य के दौरान यह वार्तालाप शोधार्थी को शोध प्रबंध पर्यवेक्षक खोजने और शोध प्रबंध सलाहकार समिति बनाने में मदद करता है। शोध प्रबंध पर्यवेक्षक शोध प्रबंध के बारे में शोधार्थी को परामर्श देता है और कम से कम दो अन्य सदस्यों वाली शोध प्रबंध सलाहकार समिति की अध्यक्षता करता है।

शोधार्थी एक लिखित प्रस्ताव तैयार करता है और थीसिस पर्यवेक्षक की सहमति के साथ शोध प्रबंध के बारे में एक संगोष्ठी को संबोधित करता है। प्रस्ताव का अनुमोदन डॉक्टरल अनुसंधान समिति (डीआरसी) द्वारा किया जाना होता है। इसके बाद से शोधार्थी अपने पर्यवेक्षक के साथ घनिष्ठ सहयोग करते हुए शोध प्रबंध पर कार्य करता है। शोध प्रबंध के पूरा होने के बारे में पर्यवेक्षक की सहमति मिलने पर शोधार्थी संगोष्ठी आयोजित करता है और बाद में शोध प्रबंध का बचाव थीसिस परीक्षा समिति के समक्ष करता है। थीसिस परीक्षा समिति की नियुक्ति पीएच.डी अध्यक्ष द्वारा की जाती है, जिसमें शोध प्रबंध सलाहकार समिति और अन्य सदस्य शामिल होते हैं।

चरण II के पूर्ण होने के साथ ही पाठ्यक्रम कार्य औपचारिक रूप से पूरे हो जाते हैं, लेकिन डॉक्टरल शोधार्थियों को अध्ययन के इस अंतिम चरण के दौरान भी अपनी रुचि के आधुनिक पाठ्यक्रम करते रहने के लिए प्रेरित किया जाता है।